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भारत की 2036 ओलंपिक पदक रणनीति का खुलासा, खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने ‘खेलो भारत कॉन्क्लेव’ में रखा देश का विज़न

Khelo Bharat Conclave

“अहंकार छोड़कर, देश को पहले रखें – केवल एक संयुक्त शक्ति ही भारत को एक वैश्विक खेल महाशक्ति बना सकती है,” डॉ. मांडविया का आह्वान

नई दिल्ली, 17 जुलाई: केंद्रीय युवा मामले और खेल मंत्री, डॉ. मनसुख मांडविया ने गुरुवार को 2036 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक और पैरालिंपिक में भारत को शीर्ष 10 देशों में स्थान दिलाने की रणनीति का अनावरण किया। एक दिवसीय ‘खेलो भारत कॉन्क्लेव’ में, भारतीय ओलंपिक संघ, भारतीय पैरालंपिक समिति, राष्ट्रीय खेल संघों, प्रमुख कॉर्पोरेट घरानों और भारतीय खेल जगत की बड़ी हस्तियों ने 2047 तक भारत को एक वैश्विक खेल महाशक्ति बनाने के रोडमैप पर मंथन किया। इस कार्यक्रम का आयोजन भारत सरकार के खेल विभाग द्वारा किया गया था।

इस कॉन्क्लेव में ‘खेलो भारत नीति 2025’ के कई प्रमुख स्तंभों पर चर्चा हुई। इनमें सुशासन के महत्व और आगामी राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक पर महत्वपूर्ण बातचीत शामिल थी, जिसे 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।

डॉ. मांडविया ने कहा, “खेल एक जन आंदोलन है। हम लक्ष्य तभी निर्धारित कर सकते हैं और उन्हें हासिल कर सकते हैं जब हम सब मिलकर काम करें। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हमेशा खेल के मामले में एक संयुक्त शक्ति में विश्वास करते हैं। हमें अपने अहंकार को त्यागना होगा, व्यापक योजना पर ध्यान केंद्रित करना होगा और योजनाओं को ठोस परिणामों में बदलना होगा।”

‘खेलो भारत नीति’ के केंद्र में एथलीट हैं, लेकिन सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि 2036 के ओलंपिक और पैरालिंपिक में भारत को शीर्ष 10 में जगह सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय खेल संघों, राज्य सरकारों और कॉर्पोरेट घरानों को एक बड़ी भूमिका निभानी होगी।

‘वन कॉर्पोरेट वन स्पोर्ट’ पहल पर भी जोर दिया गया, ताकि कॉर्पोरेट जगत खेल के विकास में सक्रिय रूप से भाग ले।

केंद्रीय युवा मामले और खेल राज्य मंत्री, श्रीमती रक्षा निखिल खडसे ने कहा कि ‘खेलो भारत नीति’ का मसौदा भारतीय खेलों की “जमीनी हकीकत” और “चुनौतियों” का अध्ययन करने के बाद तैयार किया गया है। उन्होंने कहा, “अब हमारे पास खेल के माध्यम से आगे बढ़ने का अवसर है और इस एकीकृत नीति को अपनाकर भारत मनोरंजन की दुनिया में चमक सकता है, रोजगार प्रदान कर सकता है और वास्तव में भारत के युवाओं को दिशा दे सकता है।”

डॉ. मांडविया ने राष्ट्रीय खेल संघों (NSFs) पर सुशासन की प्रक्रिया को युद्ध स्तर पर शुरू करने की जिम्मेदारी डाली। उन्होंने NSFs से अगस्त तक पांच साल की नीति प्रदान करने का आग्रह किया, जिसके आधार पर 10 साल की योजना विकसित की जाएगी।

कॉन्क्लेव में उच्च गुणवत्ता वाले कोच तैयार करने, खेल प्रशासकों को प्रशिक्षित करने, खेल के सामानों के व्यवसाय को विकसित करने और डोपिंग के खतरे को नियंत्रित करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी गहन चर्चा हुई।

एक ‘विकसित भारत’ की दिशा में, खेल मंत्रालय एक त्रि-स्तरीय प्रतिभा विकास पिरामिड पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो स्कूलों से शुरू होता है और प्रस्तावित ओलंपिक प्रशिक्षण केंद्रों पर समाप्त होता है। सरकार ने पहले ही एक 10-वर्षीय योजना की रूपरेखा तैयार कर ली है, जिसकी शुरुआत आवासीय खेल स्कूलों से होगी, जहाँ से प्रतिभाशाली बच्चों को अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता बनाने के लिए उच्च स्तर तक प्रशिक्षित किया जाएगा।

खेलो भारत कॉन्क्लेव में फिजिकल एजुकेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PEFI) और स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SGFI) के पदाधिकारी भी मौजूद रहे।

कॉन्क्लेव के मुख्य बिंदु और मंत्री का विज़न

एक दिवसीय कॉन्क्लेव में डॉ. मांडविया ने स्पष्ट किया कि 2036 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में शीर्ष 10 देशों में शामिल होना भारत का लक्ष्य है। उन्होंने कहा, “खेल एक जन आंदोलन है। हम लक्ष्य तभी हासिल कर सकते हैं जब हम सब मिलकर काम करें। हमें अहंकार को त्यागकर, व्यापक योजना पर ध्यान देना होगा।”

इस दौरान ‘वन कॉर्पोरेट वन स्पोर्ट’ पहल पर भी ज़ोर दिया गया। गौरतलब है कि खेल मंत्री पहले भी इस बात के संकेत दे चुके हैं कि वे हर फेडरेशन के साथ एक कॉर्पोरेट को जोड़ने की योजना पर काम कर रहे हैं, जिससे किसी भी संघ को पैसे की तंगी न हो। अगर खेल मंत्री सच में ऐसा कुछ कर पाने में कामयाब हो जाते हैं तो यह आर्थिक संकट से जूझ रहे खेल संघों के लिए एक बहुत बड़ी राहत होगी।

स्कूली खेलों को मिलेगा महत्व?

आज के मंथन के दौरान खेल मंत्री मांडविया ने स्कूली खेलों पर भी विशेष जोर दिया। उन्होंने स्कूलों से शुरू होने वाले एक त्रि-स्तरीय प्रतिभा विकास पिरामिड की बात की। इससे यह भी अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि वर्षों से अपेक्षित स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SGFI) को भी आने वाले समय में और अधिक महत्व दिया जा सकता है, ताकि प्रतिभाओं को जमीनी स्तर पर ही पहचाना और निखारा जा सके।

बड़े लक्ष्य और IOA की बड़ी चुनौती

एक तरफ हमारे खेल मंत्री खेलों को एक जन आंदोलन बनाने, भारत को 2047 तक खेल महाशक्ति बनाने और 2036 में भारत में ओलंपिक खेल करवाने की बात करते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन सभी सपनों को साकार करने में भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी। दुर्भाग्य से, इस समय भारतीय ओलंपिक संघ एक बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा है। अध्यक्ष पी. टी. उषा और कार्यकारी समिति के बीच का विवाद चरम पर है। आरोप हैं कि पी. टी. उषा कार्यकारी समिति को दरकिनार करते हुए मनमाने ढंग से फैसले ले रही हैं, जिससे संघ की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

क्या खेल मंत्री करेंगे हस्तक्षेप?

इस पूरे विवाद ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की साख को बट्टा लगाया है। हालांकि, हमारे सूत्रों के अनुसार, खेल मंत्री ने जल्द ही भारतीय ओलंपिक संघ के कार्यकारी सदस्यों को मिलने के लिए बुलाया है। यदि यह खबर सही है, तो ऐसा लगता है कि खेल मंत्री इस समस्या पर अब गंभीरता से विचार कर रहे हैं और इसके समाधान के लिए हस्तक्षेप कर सकते हैं।

अब यह तो समय ही बताएगा कि मंत्री का हस्तक्षेप कितना कारगर होता है, अन्यथा भारतीय ओलंपिक संघ की आंतरिक कलह ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की इज्जत को मटियामेट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और यह देश के ओलंपिक सपनों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बन सकती है।